Saturday, November 22, 2014

मांग आज भी कोरी है


माँ बाबा की लाडली बेटी
देखो कितनी अकेली है
ना हथेली पर हिन्ना है
ना ही कोई चूड़ी है

ओढ़ी नहीं सुहाग चुनरिया
मांग आज भी कोरी है
देखो चारों और उसके
ब्दनासिबी कैसी फैली है

जिन संग खेली आंख मिचोली
उठ गयी उनकी डोली है
माँ बाबा की लाडली बेटीदे
देखो कितनी अकेली है 

फूलों के साथ काँटे होते हैं

फूलों के साथ काँटे होते हैं
फूलों में खुश्बू होती है
काँटे तो चुभते रहते हैं.

फूलों की किस्मत होती है
कुछ तो मंदिर चढ़ते हैं
कुछ अर्थी पर रोते हैं

बनते हैं कभी दुल्हन की सेज
तो कभी तवायफ़ के हाथों में
बनके गजरा महकते हैं

कभी घर को सुंदर बनाते हैं
दिलों में खुश्बू फैलाते हैं तो
कभी पैरों की रौंदन होते है