दोस्त और दोस्ती के रंग
बदलते देर नही लगती
जहां मटकती हैं आँखें
सादगी ठहर नही सकती
लचकती हो कमर जहां
भंवरे आ ही जाते हैं
चंचल शोख अदाओं के आगे
नाजुक छोरी ठहर नही सकती
दिखा के गोरा रंग तन का
लहराती हैं आँचल इस तरह
उड़ जाती हैं किसी कों भी ले संग
दोस्त वो तेरी कैसे हो सकती
खाओ कसम कि अब तुम
मिलाओगी न अपने अजीज से
छुपाकर रखना किवाड़ में
जहां दोस्त की चोरी हो नहीं सकती