Thursday, September 24, 2009

फरियाद कर रही हूँ

आँसू बहा बहा कर ,मैं याद कर रही हूँ ,
"नीरा" के नीर देखो ,फरियाद कर रही हूँ

आँखों मे हैं जुदाई के बेसुकून लम्हे,
आहों से अपने दिल को आबाद कर रही हूँ

मीठे पलों को खातों में क़ैद कर रही हूँ
भीगी आँखों से पढ़ पलकें नम कर रही हूँ

फासलों से दूर दिल में बसेरा कर रही हूँ
मुलाकात के आसरे हर सरहदद पर कर रही हूँ

मिल जाए सुकून बाँध जाऊं हर जनम
मंदिर सा दिल मुहब्बत से आबाद कर रही हूँ

Sunday, September 20, 2009

केसे तुझ बिन रह पाऊँगी

केसे बैठूं डोली में माँ
आएगी जब याद तेरी
यूँही आंसू बहायूंगी
तुझ बिन रह ना पाऊँगी

वो पल जो तेरे आंगन में
मैंने इतने दिन गुजारे हैं
वो दीवारें जिन पर मैंने
रंगों के निशान बनाये हैं
केसे उनको भूल पाऊँगी

पता है माँ मेरी गुडिया
आज भी संदूक में रखी है
क्या हुआ जो उसकी एक टांग छोटी है
केसे उसको छोर जाउंगी

आंगन में भिखरी हैं यादें
बुहार के भी ना समेट पाऊँगी
आएगी तेरी याद दिन, रात मुझको
केसे तुझ बिन रह पाऊँगी

बाबुल कि भिलाख्ती आंखे
दिल मेरा चीर देती हैं
भाई के नन्हे हाथ मुझे
जाने से रोक लेते हैं
इनकी आँखों से निकले आंसूं
केसे मैं देख पाऊँगी

क्या बेटी तुझ पर बोझ है माँ
क्यूँ नहीं रह सख्ती तेरे साथ
भाई भी तोः लायेगा भाभी
जमाई को भी ले आ घर
माँ चल आ कुछ नया करें
आज नया इतहास रचें
नयी कुछ रौशनी जगाएं

बता माँ तू ही बता
केसे तुझ बिन रह पाऊँगी