Sunday, August 23, 2009

औरत की क्या हस्ती है

औरत की क्या हस्ती है
चीज़ वोः कितनी सस्ती है

कहीं वोः दिल की रानी है
कहीं बस एक कहानी है

कितनी बेबस दिखती है
जब बाज़ार में बिकती है

कहीं वोः दुर्गा माता है
इस संसार की दाता है

कहीं वोः घर की दासी है
नादिया हो कर प्यासी है

सब के ताने सहती है
फिर भी वोः चुप रहती है

सरस्वती का अवतार है वोः
शिक्षा का भंडार है वोः

किस्मत उसपे हंसती है
जब शिक्षा को तरसती है

क्या क्या ज़ुल्म वोः सहती है
फिर भी हंसती रहती है

कहीं सजा यह पाती है
गर्ब में मारी जाती है

कहीं वोः माता काली है
कहीं वोः एक सवाली है

खाली हाथों आने पर
दान-दहेज़ ना लाने पर

ज़ुल्म यह धाया जाता है
उसको जलाया जाता है

नीर नयन से बरसे है वोः
मुस्कान को तरसे है

खुशियों को तरस्ती है
औरत की क्या हस्ती है

Friday, August 7, 2009

प्यार के बदले जो जुल्म ढाते हैं

प्यार के बदले जो जुल्म ढाते हैं ।
तोड़कर दिल कैसे मुस्कराते हैं ॥

माँगते खुशी के चंद पल जिनसे ।
वही ताउम्र गम का रिश्ता बनाते हैं ॥

पत्थर से लगी चोट सभी सहते हैं ।

अपनों से लगे घाव दर्द को बढ़ाते हैं॥

लगाई तोहमत जिन्होंने बेवफाई की ।
बिस्तर गैर का अब शान से सजाते हैं ॥

किस भरम से मेहरबानी करूँ या रब ।
रहकर दूर हमसे ऐहसान जो बताते हैं ॥

संगदिल तो थे ही खुदगर्ज भी बने ।
बेरुखी दिखाकर वो आज भी सताते हैं ॥

- नीरा