बेटे से माँ की दशा देखी न गयी
सामने ही उसके, रंगों की दुर्दशा हो गयी
कैसे गले से मंगलसूत्र छीना गया
हाथों से देखो चूड़ियाँ कैसे तोड़ी गईं
हँसता खेलता परिवार टूट सा गया
अर्थी जब बाबा की निकाली गयी
चीख रही आत्मा रो रहीं ऑंखें
रहे सपने अधूरे, जिंदगी ठहर गयी
चुननी हैं अस्थियाँ , जाना है गंगा,
आखरी सफ़र की यही रस्म रह गयी