दोस्त और दोस्ती के रंग
बदलते देर नही लगती
जहां मटकती हैं आँखें
सादगी ठहर नही सकती
लचकती हो कमर जहां
भंवरे आ ही जाते हैं
चंचल शोख अदाओं के आगे
नाजुक छोरी ठहर नही सकती
दिखा के गोरा रंग तन का
लहराती हैं आँचल इस तरह
उड़ जाती हैं किसी कों भी ले संग
दोस्त वो तेरी कैसे हो सकती
खाओ कसम कि अब तुम
मिलाओगी न अपने अजीज से
छुपाकर रखना किवाड़ में
जहां दोस्त की चोरी हो नहीं सकती
14 comments:
पहली बार आया आपके ब्लॉग पर ,,,मन खुश हो गया ...बड़ी सुन्दर रचना है ,,,और भी पढता हूँ ....
नव युग!!
बड़ी सुन्दर रचना है ........ दर्द को क्या शब्द दिए है आपने....
बड़ी सुन्दर रचना है ........ दर्द को क्या शब्द दिए है आपने....
bahut khub
सुन्दर रचना है .
rajender ji
aapka swagat hai mere blog par aapko rachna pasand aayi
dhanyawaad
sameer ji
bahut bahut shukriya
rajnish ji
aapki saharna ki shukrguzaar hoon
shekhar ji
aapko pasand aayi rachna
shukriya
shekhar ji
aapko pasand aayi rachna
shukriya
manoj ji
bahut bahut shukriya
पहली बार आया आपके ब्लॉग पर ,,,मन खुश हो गया ...बड़ी सुन्दर रचना है ,,,और भी पढता हूँ ....
पहली बार आया आपके ब्लॉग पर ,,,मन खुश हो गया ...बड़ी सुन्दर रचना है ,,,और भी पढता हूँ ....
sanjay ji
aapka swagat hain mere blog par, aapko pasand aayi rachna dilse abhari hoon.
अच्छा लिखा है नीरा जी आपने
- विजय
दिखा के गोरा रंग तन का
लहराती हैं आँचल इस तरह
उड़ जाती हैं किसी कों भी ले संग
दोस्त वो तेरी कैसे हो सकती
हिंदी साहित्य संगम जबलपुर
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