किस लिए हम हैं इस क़दर बुज़दिल
ज़ुल्म सहते हैं हम ख़ामोशी से
एक मासूम बेटी की इज़्ज़त
सरे बाजार लूटी रहती है
और हम जो तमाशबीन बने
इस तमाशे को देखा करते हैं
जिसकी इज़्ज़त लूटी सरे बाजार
वह हमारी ही अपनी बेटी है
और इज़्ज़त को लूटने वाला
कितना बेफिक्र किस क़दर आज़ाद
कितने बुज़दिल हैं लोग ऐ :"नीरा ”
कितना बेबस है देश का क़ानून ?
ज़ुल्म सहते हैं हम ख़ामोशी से
एक मासूम बेटी की इज़्ज़त
सरे बाजार लूटी रहती है
और हम जो तमाशबीन बने
इस तमाशे को देखा करते हैं
जिसकी इज़्ज़त लूटी सरे बाजार
वह हमारी ही अपनी बेटी है
और इज़्ज़त को लूटने वाला
कितना बेफिक्र किस क़दर आज़ाद
कितने बुज़दिल हैं लोग ऐ :"नीरा ”
कितना बेबस है देश का क़ानून ?
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