औरत की क्या हस्ती है
चीज़ वोः कितनी सस्ती है
कहीं वोः दिल की रानी है
कहीं बस एक कहानी है
कितनी बेबस दिखती है
जब बाज़ार में बिकती है
कहीं वोः दुर्गा माता है
इस संसार की दाता है
कहीं वोः घर की दासी है
नादिया हो कर प्यासी है
सब के ताने सहती है
फिर भी वोः चुप रहती है
सरस्वती का अवतार है वोः
शिक्षा का भंडार है वोः
किस्मत उसपे हंसती है
जब शिक्षा को तरसती है
क्या क्या ज़ुल्म वोः सहती है
फिर भी हंसती रहती है
कहीं सजा यह पाती है
गर्ब में मारी जाती है
कहीं वोः माता काली है
कहीं वोः एक सवाली है
खाली हाथों आने पर
दान-दहेज़ ना लाने पर
ज़ुल्म यह धाया जाता है
उसको जलाया जाता है
नीर नयन से बरसे है वोः
मुस्कान को तरसे है
खुशियों को तरस्ती है
औरत की क्या हस्ती है
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