चली थी किस्मत बनने
खुदा से लड़ कर अपने
हाथों की लकीरें लिखवाने
मिला कुछ ऐसा मुझको
जिंदगी वहीं ठहर गयी
ग़रीबी की ज़िल्लत मिली
रात-ओ-दिन -------------
मिला न नया कपड़ा कभी
ना ही मिली कोई गुड़िया
चादर पर लगाकर पैबंद
जमीन पर बिछी चटाई।
ज़िंदगी उतरन बन गयी
हुई छोटी तो क्या हुआ
उमर मेरी भी बढ़ती है
मिलते हैं भैया को नये कपड़े
मुझको देते उतरन हैं
कैसे क़ुदरत खेल खेल गयी
महलों के खवाब न देखे
सपनों की सेज सजाई नहीं
झुग्यों में रहकर मैंने
फिर हिम्मत जुटाई है
अब न ओढूंगी न ही
पहनूगी किसी की उतरन
कहानी नयी लिखी गयी
वक़्त से सीखा है मैंने
ख़ुद पर विश्वास है मुझको
पैबंद लगी चादर ओढ़के
चाहे न कोई जले दिया
पढूंगी चाहे जो भी हो
पौन्चूंगी अपने मुकाम पर
फेंकना उतार उतरन है।
ज़िंदगी ऐसी रच गयी
खुदा से लड़ कर अपने
हाथों की लकीरें लिखवाने
मिला कुछ ऐसा मुझको
जिंदगी वहीं ठहर गयी
ग़रीबी की ज़िल्लत मिली
रात-ओ-दिन -------------
मिला न नया कपड़ा कभी
ना ही मिली कोई गुड़िया
चादर पर लगाकर पैबंद
जमीन पर बिछी चटाई।
ज़िंदगी उतरन बन गयी
हुई छोटी तो क्या हुआ
उमर मेरी भी बढ़ती है
मिलते हैं भैया को नये कपड़े
मुझको देते उतरन हैं
कैसे क़ुदरत खेल खेल गयी
महलों के खवाब न देखे
सपनों की सेज सजाई नहीं
झुग्यों में रहकर मैंने
फिर हिम्मत जुटाई है
अब न ओढूंगी न ही
पहनूगी किसी की उतरन
कहानी नयी लिखी गयी
वक़्त से सीखा है मैंने
ख़ुद पर विश्वास है मुझको
पैबंद लगी चादर ओढ़के
चाहे न कोई जले दिया
पढूंगी चाहे जो भी हो
पौन्चूंगी अपने मुकाम पर
फेंकना उतार उतरन है।
ज़िंदगी ऐसी रच गयी
8 comments:
नीरा जी
अभिवंदन
आपने इस बदलते परिवेश में भी जब नारी शिक्षा में सुधार
और नारी शोषण का खात्मा नहीं हो पा रहा है
तब ऐसे समय में आपकी ये प्रभावी राचना
जोश और जागृति फैलाने का कार्य कारेगी
सुन्दर रचना के लिए बधाई.
- विजय
ग़रीबी की ज़िल्लत मिली
रात-ओ-दिन -------------
मिला न नया कपड़ा कभी
ना ही मिली कोई गुड़िया
चादर पर लगाकर पैबंद
जमीन पर बिछी चटाई।
ज़िंदगी उतरन बन गयी
बहुत खूब....!!
निरा जी,
बहुत अच्छा लिख रहीं हैं आप ....बधाई ....!!
namaskar neera ji
aapki is kavita ko padhkar man ko bahut dukh pahuncha .. hamare desh me ab bhi aise parivaar hai jo is tarah ka bhedbhaav rakhte hai aur ladkiyon ko utran par hi jeene ke liye mazboor kar dete hai .
itni sashakt kavita ke liye meri badhai sweekar karen..
meri nayi kavita " tera chale jaana " aapke pyaar aur aashirwad bhare comment ki raah dekh rahi hai .. aapse nivedan hai ki padhkar mera hausala badhayen..
http://poemsofvijay.blogspot.com/2009/05/blog-post_18.html
aapka
vijay
bahut hi badiya neeraji. aapane nari ki peeda ko bahut hi shiddat ke saath mahsoos karte huye shabdon main dala hai. badhai.
vaqt mile to mere blog (meridayari.blogspot.com) par bhi aayen.
नीरा जी
अभिवंदन
आपने इस बदलते परिवेश में भी जब नारी शिक्षा में सुधार
और नारी शोषण का खात्मा नहीं हो पा रहा है
तब ऐसे समय में आपकी ये प्रभावी राचना
जोश और जागृति फैलाने का कार्य कारेगी
सुन्दर रचना के लिए बधाई.
- विजय
vijay ji
aap yahan apna kimti waqt diya
dilser shukriya adaa karti hoon.
nira
ग़रीबी की ज़िल्लत मिली
रात-ओ-दिन -------------
मिला न नया कपड़ा कभी
ना ही मिली कोई गुड़िया
चादर पर लगाकर पैबंद
जमीन पर बिछी चटाई।
ज़िंदगी उतरन बन गयी
बहुत खूब....!!
निरा जी,
बहुत अच्छा लिख रहीं हैं आप ....बधाई ....!!
Harkirat ji
aap ki hausla afzaayi hai teh e dil se shukriya adaa karti hoon
nira
namaskar neera ji
aapki is kavita ko padhkar man ko bahut dukh pahuncha .. hamare desh me ab bhi aise parivaar hai jo is tarah ka bhedbhaav rakhte hai aur ladkiyon ko utran par hi jeene ke liye mazboor kar dete hai .
itni sashakt kavita ke liye meri badhai sweekar karen..
meri nayi kavita " tera chale jaana " aapke pyaar aur aashirwad bhare comment ki raah dekh rahi hai .. aapse nivedan hai ki padhkar mera hausala badhayen..
http://poemsofvijay.blogspot.com/2009/05/blog-post_18.html
aapka
vijay
Vijay ji
jaise har insaan alag hota hai waise hi har ghar ke neeyam alag hote hai, shayed yeh hi karan kai
jo yeh uttran ki parampara aaj bhi chalti hai
main zaroor aapke bolg par aapki rachna padhoongi.
aapki rachna pasand aayi abhari hoon.
nira
bahut hi badiya neeraji. aapane nari ki peeda ko bahut hi shiddat ke saath mahsoos karte huye shabdon main dala hai. badhai.
vaqt mile to mere blog (meridayari.blogspot.com) par bhi aayen.
shivraj ji
hausla afzaayi hai
bahut bahut sukriya.
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