यह ज़ख्मो के सिलसिले जाने कब टूटेंगे
यह बदनास्सीबी के दाग जाने कब छूटेंगे
चाहे कोई भी लिबास बदल के आये ज़िन्दगी
दर्द के फफोले फिर भी जाने कब फूटेंगे
जिंदगी कम है खुशियों कि ए मेरे खुदा
तन्न्हई याद और सपने जाने फिर कब लूटेंगे
खुदको बांध किया, किवार ना खिड़की खोली
चाहत पर लगाया अंश, रिश्ते जाने कब रूठेंगे
दर्द के घावों ने किए हैं खिलवाड़ “निरा”
मलहम से लगाये पैबंद जाने कब सूखेंगे
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