Monday, December 7, 2009

चहरे पर चहरा

चहरे पे चहरा लगाकर झूटी प्रीत जताते हैं
किस तरह पास बुलाकर दिलबर दिलको तड़पते हैं .

दिखाते हैं ख्वाब हज़ारों सुनहरे हर दिन
लूटकर सपने, आँखोंसे खून टपकते हैं .

एक से दिल कहाँ भरता है हर्जाइयों का आजकल .
हमरी पीठ पीछे रंग रलियाँ मानते हैं .

वही फिर कभी मुडके मानने नहीं आते .
जो नाज़ उठा उठाके कभी रूठना सिखाते हैं .

अब हम भी सीख गए, तो हैरान नहीं होते .
पहले सोचते थे लोग आंसू कहाँ छिपाते हैं.

निरा किसकी कहानी पर ऐतबार करैं बेदर्दी.
केसे दिलफरेब अफसाने बनाकर सुनते हैं,

मासूमियत का नकाब चड़ा रखा है चहरेपर ,
केसे शिद्दतसे फरेबी प्यार की दुहाई फर्नाते हैं.

4 comments:

विनोद कुमार पांडेय said...

बढ़िया शेर...कुछ अच्छी विचारों का संकलन..धन्यवाद

"Nira" said...

vinod ji
bahut bahut shukriya

Udan Tashtari said...

अब हम भी सीख गए, तो हैरान नहीं होते .
पहले सोचते थे लोग आंसू कहाँ छिपाते हैं.


बेहतरीन शेर निकाले हैं, वाह!!

"Nira" said...

अब हम भी सीख गए, तो हैरान नहीं होते .
पहले सोचते थे लोग आंसू कहाँ छिपाते हैं.


बेहतरीन शेर निकाले हैं, वाह!!

sameer ji
aapko pasand aaye sher, aapki saharna ka dilse shukriya adaa karti hoon.