Saturday, April 11, 2009

होरी खेलन चले मुसदिलाल

लाल घाट पर रहते रहते, कहें मुसद्दी लाल
होरी में इस साल सभी देखो मेरा धमाल

गोरी की इस बार रंगों से , होगी मुलाकात ।
रंग देंगे तन -मन उसका , चेहरे की क्या बात

पग ठिठके पथ में उसके , हुआ नहीं विश्वास
देखा जब माँ के ही आगे, पड़ी पुत्र की लाश

उसकी भी तो होरी होगी , पर अग्नि के साथ
रोते देखा उसकी माँ को , मले वो अपने हाथ

पी ठंडाई कहीं पे , मचलें छैल -छबीले
डाल रहे रंग एक दूजे पर हरे-लाल-नीले-पीले

कहीं पर बच्चे कचरे में ढूँढ रहे थे रोटी
होली खेल नहीं पायें, इनकी किस्मत खोटी

देख के दुनिया का ये रंग कहें मुसद्दीलाल
आज तो मेरे भेजे में उमड़े कई सवाल

अब न ही रंग न ही करेंगे आँख मिचोली
यहाँ मुसद्दी के दिल की जलने लगी है होली