Monday, December 7, 2009

चहरे पर चहरा

चहरे पे चहरा लगाकर झूटी प्रीत जताते हैं
किस तरह पास बुलाकर दिलबर दिलको तड़पते हैं .

दिखाते हैं ख्वाब हज़ारों सुनहरे हर दिन
लूटकर सपने, आँखोंसे खून टपकते हैं .

एक से दिल कहाँ भरता है हर्जाइयों का आजकल .
हमरी पीठ पीछे रंग रलियाँ मानते हैं .

वही फिर कभी मुडके मानने नहीं आते .
जो नाज़ उठा उठाके कभी रूठना सिखाते हैं .

अब हम भी सीख गए, तो हैरान नहीं होते .
पहले सोचते थे लोग आंसू कहाँ छिपाते हैं.

निरा किसकी कहानी पर ऐतबार करैं बेदर्दी.
केसे दिलफरेब अफसाने बनाकर सुनते हैं,

मासूमियत का नकाब चड़ा रखा है चहरेपर ,
केसे शिद्दतसे फरेबी प्यार की दुहाई फर्नाते हैं.

Tuesday, December 1, 2009

मिलता ना कोई सम्मान है

क्या कभी किसी ने सोचा है
क्या कभी किसी ने पूछा है
तुम्हारी भी कोई चाहत है
तुम्हारी भी कोई इच्छा है

ट्रेफिक सिग्नल पर खड़े
ताली बजा कर पैसे लें
जो ना करे तंग उनको
जी भर के वो दुआ दें.

आए जो कहीं दुल्हन
खबर उनको लग जाती है
आकर दूल्हे के घर वो
आशीर्वाद दे जाते हैं

बदले में मिलता क्या उनको
कुछ कपड़े कुछ रुपए बस.
देता ना कोई इज़्ज़त इनको
मिलता ना कोई सम्मान है

वो भी है इंसान हम से
है उनका भी अपना घर
कुछ कमी है तभी,
वो कहलाते " किन्नर"

Thursday, September 24, 2009

फरियाद कर रही हूँ

आँसू बहा बहा कर ,मैं याद कर रही हूँ ,
"नीरा" के नीर देखो ,फरियाद कर रही हूँ

आँखों मे हैं जुदाई के बेसुकून लम्हे,
आहों से अपने दिल को आबाद कर रही हूँ

मीठे पलों को खातों में क़ैद कर रही हूँ
भीगी आँखों से पढ़ पलकें नम कर रही हूँ

फासलों से दूर दिल में बसेरा कर रही हूँ
मुलाकात के आसरे हर सरहदद पर कर रही हूँ

मिल जाए सुकून बाँध जाऊं हर जनम
मंदिर सा दिल मुहब्बत से आबाद कर रही हूँ

Sunday, September 20, 2009

केसे तुझ बिन रह पाऊँगी

केसे बैठूं डोली में माँ
आएगी जब याद तेरी
यूँही आंसू बहायूंगी
तुझ बिन रह ना पाऊँगी

वो पल जो तेरे आंगन में
मैंने इतने दिन गुजारे हैं
वो दीवारें जिन पर मैंने
रंगों के निशान बनाये हैं
केसे उनको भूल पाऊँगी

पता है माँ मेरी गुडिया
आज भी संदूक में रखी है
क्या हुआ जो उसकी एक टांग छोटी है
केसे उसको छोर जाउंगी

आंगन में भिखरी हैं यादें
बुहार के भी ना समेट पाऊँगी
आएगी तेरी याद दिन, रात मुझको
केसे तुझ बिन रह पाऊँगी

बाबुल कि भिलाख्ती आंखे
दिल मेरा चीर देती हैं
भाई के नन्हे हाथ मुझे
जाने से रोक लेते हैं
इनकी आँखों से निकले आंसूं
केसे मैं देख पाऊँगी

क्या बेटी तुझ पर बोझ है माँ
क्यूँ नहीं रह सख्ती तेरे साथ
भाई भी तोः लायेगा भाभी
जमाई को भी ले आ घर
माँ चल आ कुछ नया करें
आज नया इतहास रचें
नयी कुछ रौशनी जगाएं

बता माँ तू ही बता
केसे तुझ बिन रह पाऊँगी

Sunday, August 23, 2009

औरत की क्या हस्ती है

औरत की क्या हस्ती है
चीज़ वोः कितनी सस्ती है

कहीं वोः दिल की रानी है
कहीं बस एक कहानी है

कितनी बेबस दिखती है
जब बाज़ार में बिकती है

कहीं वोः दुर्गा माता है
इस संसार की दाता है

कहीं वोः घर की दासी है
नादिया हो कर प्यासी है

सब के ताने सहती है
फिर भी वोः चुप रहती है

सरस्वती का अवतार है वोः
शिक्षा का भंडार है वोः

किस्मत उसपे हंसती है
जब शिक्षा को तरसती है

क्या क्या ज़ुल्म वोः सहती है
फिर भी हंसती रहती है

कहीं सजा यह पाती है
गर्ब में मारी जाती है

कहीं वोः माता काली है
कहीं वोः एक सवाली है

खाली हाथों आने पर
दान-दहेज़ ना लाने पर

ज़ुल्म यह धाया जाता है
उसको जलाया जाता है

नीर नयन से बरसे है वोः
मुस्कान को तरसे है

खुशियों को तरस्ती है
औरत की क्या हस्ती है

Friday, August 7, 2009

प्यार के बदले जो जुल्म ढाते हैं

प्यार के बदले जो जुल्म ढाते हैं ।
तोड़कर दिल कैसे मुस्कराते हैं ॥

माँगते खुशी के चंद पल जिनसे ।
वही ताउम्र गम का रिश्ता बनाते हैं ॥

पत्थर से लगी चोट सभी सहते हैं ।

अपनों से लगे घाव दर्द को बढ़ाते हैं॥

लगाई तोहमत जिन्होंने बेवफाई की ।
बिस्तर गैर का अब शान से सजाते हैं ॥

किस भरम से मेहरबानी करूँ या रब ।
रहकर दूर हमसे ऐहसान जो बताते हैं ॥

संगदिल तो थे ही खुदगर्ज भी बने ।
बेरुखी दिखाकर वो आज भी सताते हैं ॥

- नीरा

Thursday, July 30, 2009

गंगा तो बहती जाएगी

खुद में सब को समाएगी
करते हैं पाप जो दिन रात
उनके लिए भी मुक्ति लाएगी
गंगा तो बहती जायेगी

लूटते किस तरहां ज़िंदगियाँ
बैठ के गंगा किनारे फिर
जप्पते हैं राम नाम यह
करते हैं बलात्कार भी
इक दिन ज़िंद ताड़पाएगी
गंगा तो बहती जाएगी

चोरी डकैती इनके शौक़ हैं
हथियार से होली खेलते हैं
आतंक फैला रखा है यहाँ
देश को भी बैच देते हैं
इक दिन उफान ये लाएगी
गंगा तो बहती जाएगी

गंगा सब कुछ जानती है
पापी के लिए भी रो लेती है
दिल उसका बहुत महान है
सब के पाप धो देती हैं
वो दिल शिव-शिव कहलाएगी
गंगा तो बहती जाएगी

पाप या हो आस्तियाँ किसी
किहर चीज़ बहा ले जाती है
गंगा जल पावन है इतना
जिसे छूए उसे भा जाती है
हर दिल में जगह बनाएगी
गंगा तो बहती जाती ही

शिव केशसे उतार मा गंगा
भाव सागर में मिल जायेगी

Saturday, July 25, 2009

मेरा तो शाम से जी घबराए

मेरा तो शाम से जी घबराए
दीया जलाते ही मन मेरा होता है बेचैन
रोज़ सितारे गिन गिन कटती मुझ दुखिया कि रैन
लम्बी लम्बी रातें मूझ को पल भर नींद ना आये
मेरा तो शाम से जी घबराए

अफसानों में लिखा हुवा है तेरा मेरा प्यार
तुझ पे दिल और जान निछावर साजन सौ सौ बार
प्यार में जो मिट जाये वोही तो दीवाना कहलाये
मेरा तो शाम से जी घबराए

सावन का मौसम आया जब काली बदली छाई
पानी कि ठंडी बूंदों ने तन में आग लगाई
इक बिरहन ऐसे में केसे तनहा रात बिताये
मेरा तो शाम से जी घबराए

किस को दर्द बताऊं किस को दिल का हाल सुनाऊं
शर्म के मारे सखियों से भी दिल की बात छुपायुं
नाम जुबां पे तेरा आते आते बस रह जाये
मेरा तो शाम से जी घबराए

दूर रहूँ मैं तूझ से यह मेरा दस्तूर नहीं है
दूर है मुझ से ऐ साजन तो फिर भी दूर नहीं है
दिल में जो रहता है दिल उसको ही ढूंढ ना पाए
मेरा तो शाम से जी घबराए

Thursday, July 23, 2009

मेरा तो सब कुछ तेरा प्यार

मेरा तो सब कुछ तेरा प्यार
बारिश जब आये तो मेरा और भी दिल घबराए
जुल्मी सावन मस्त हवा के झोंके ले कर आये
याद में तेरी दिल तडपे और नैना नीर बहाए
सजन मेरा तन, मन, धन सब तुझ पे जाए निसार
मेरा तो सब कुछ तेरा प्यार

ज़रा सी आहट हो तो सोचूँ सजना लौट के आये
कब से घर के दरवाज़े पे बैठी आस लगाए
आजा ए बेदर्दी अब तो मुझ से रहा ना जाए
तेरे बीन इक बोझ सा लागे मुझ को यह संसार
मेरा तो सब कुछ तेरा प्यार

रोज़ मेरी गलीयों में आये मुझ से आँख चुराए
जैसे सूखे खेत से बादल बिन बरसे उड़ जाए
जैसे इक प्यासे को कोई खाली जाम दिखाए
कैसे समझाऊँ मैं उसको प्यार नहीं व्योपार
मेरा तो सब कुछ तेरा प्यार

कब तक ऐ बेदर्द रहेगा प्यार से तू अंजाना
एक झलक दिखादे जालिम दिल तेरा दीवाना
तेरे प्यार में जीना है और तुझ पे ही मर जाना
तेरे बिन जीवन का हर सच मेरे लिए बेकार
मेरा तो सब कुछ तेरा प्यार

Friday, May 22, 2009

आखरी सफ़र


बेटे से माँ की दशा देखी न गयी
सामने ही उसके, रंगों की दुर्दशा हो गयी

कैसे गले से मंगलसूत्र छीना गया
हाथों से देखो चूड़ियाँ कैसे तोड़ी गईं

हँसता खेलता परिवार टूट सा गया
अर्थी जब बाबा की निकाली गयी

चीख रही आत्मा रो रहीं ऑंखें
रहे सपने अधूरे, जिंदगी ठहर गयी

चुननी हैं अस्थियाँ , जाना है गंगा,
आखरी सफ़र की यही रस्म रह गयी

- नीरा राजपाल

Thursday, May 14, 2009

जिंदगी उतरन बन गयी

चली थी किस्मत बनने
खुदा से लड़ कर अपने
हाथों की लकीरें लिखवाने
मिला कुछ ऐसा मुझको
जिंदगी वहीं ठहर गयी

ग़रीबी की ज़िल्लत मिली
रात-ओ-दिन -------------
मिला न नया कपड़ा कभी
ना ही मिली कोई गुड़िया
चादर पर लगाकर पैबंद
जमीन पर बिछी चटाई।
ज़िंदगी उतरन बन गयी

हुई छोटी तो क्या हुआ
उमर मेरी भी बढ़ती है
मिलते हैं भैया को नये कपड़े
मुझको देते उतरन हैं
कैसे क़ुदरत खेल खेल गयी

महलों के खवाब न देखे
सपनों की सेज सजाई नहीं
झुग्यों में रहकर मैंने
फिर हिम्मत जुटाई है
अब न ओढूंगी न ही
पहनूगी किसी की उतरन
कहानी नयी लिखी गयी

वक़्त से सीखा है मैंने
ख़ुद पर विश्वास है मुझको
पैबंद लगी चादर ओढ़के
चाहे न कोई जले दिया
पढूंगी चाहे जो भी हो
पौन्चूंगी अपने मुकाम पर
फेंकना उतार उतरन है।
ज़िंदगी ऐसी रच गयी

Saturday, April 11, 2009

होरी खेलन चले मुसदिलाल

लाल घाट पर रहते रहते, कहें मुसद्दी लाल
होरी में इस साल सभी देखो मेरा धमाल

गोरी की इस बार रंगों से , होगी मुलाकात ।
रंग देंगे तन -मन उसका , चेहरे की क्या बात

पग ठिठके पथ में उसके , हुआ नहीं विश्वास
देखा जब माँ के ही आगे, पड़ी पुत्र की लाश

उसकी भी तो होरी होगी , पर अग्नि के साथ
रोते देखा उसकी माँ को , मले वो अपने हाथ

पी ठंडाई कहीं पे , मचलें छैल -छबीले
डाल रहे रंग एक दूजे पर हरे-लाल-नीले-पीले

कहीं पर बच्चे कचरे में ढूँढ रहे थे रोटी
होली खेल नहीं पायें, इनकी किस्मत खोटी

देख के दुनिया का ये रंग कहें मुसद्दीलाल
आज तो मेरे भेजे में उमड़े कई सवाल

अब न ही रंग न ही करेंगे आँख मिचोली
यहाँ मुसद्दी के दिल की जलने लगी है होली

Tuesday, March 10, 2009

वो तो प्रेम दीवानी हो ली.

सतरंगा ये इन्द्रधनुष
आज उतर पृथ्वी पर आया
अपने हाथ बढा कर ले लो
रंग प्यार के सारे लाया

रंग-अबीर की बौछारों से
भीग गयीं ब्रिज की गोरी .
आज श्याम की पिचकारी से
कोई बचेगी ना छोरी

हरे, गुलाबी नीले रंग से,
छाई है हर और उमंग
राधा की आँखे बतलाएं ,
दिल में उठने लगी तरंग

दूर खडी है विरहन मीरा
लिए हाथ में इकतारा
बनकर जोगन सारा जीवन
कृष्ण कन्हैया पर वारा

कृष्ण भक्ति में मीरा ने फ़िर
पहनी केशरिया चोली
गीत प्रीतके गा-गाकर के
वो तो प्रेम दीवानी हो ली

Sunday, March 8, 2009

खैरात की जिंदगी नहीं चाहिए.

आज की नारी खुद में एक ढाल है
अपनी एक पहचान है।
गये ज़माने, जब गुलाम थी
वो हर बात इजाज़त पर निर्भर थी
सांस भी उधार में लेनी पढ़ती थी।

सब को खिला कर अन्नपूर्णा
अकेले खाने बैठती थी।
सबके सोने के बाद भी।
सब की सेवा करती थी

अब आजादी वो चाहती है।
खुद अपने नियम बनायगी
क़दम से कदम वो मिलाएगी,
राह से हर तूफ़ान हटाएगी

गर्व से अब वो जिए जायेगी
कमजोरी को ताकत बनाएगी
खैरात की जिंदगी नहीं चाहिए।
स्वाभिमान से वो सर उठाएगी

अब देखो कोई झूका ना पायेगा
शक्ति का प्रतिबिम्ब बनकर
वो जग में जगमगायेगी
अब वो सही रूप में सामने आएगी

अब सर उठायेगी
अब दुनिया झुकायेगी
- नीरा

Friday, February 20, 2009

यह ज़ख्मो के सिलसिले जाने कब टूटेंगे

यह ज़ख्मो के सिलसिले जाने कब टूटेंगे
यह बदनास्सीबी के दाग जाने कब छूटेंगे

चाहे कोई भी लिबास बदल के आये ज़िन्दगी
दर्द के फफोले फिर भी जाने कब फूटेंगे

जिंदगी कम है खुशियों कि ए मेरे खुदा
तन्न्हई याद और सपने जाने फिर कब लूटेंगे

खुदको बांध किया, किवार ना खिड़की खोली
चाहत पर लगाया अंश, रिश्ते जाने कब रूठेंगे

दर्द के घावों ने किए हैं खिलवाड़ “निरा”
मलहम से लगाये पैबंद जाने कब सूखेंगे

Wednesday, January 28, 2009

"वी" अक्षर इतना विनाशकारी क्यूँ ह

"वी" अक्षर इतना विनाशकारी क्यूँ है
क्यूँ इस्स.से मिलते शब्द रोते हैं
वैश्या, विकलांग, विधवा विधुर
दर्द से भरे होते हैं.

वैश्या कोई भी जानम से नही होती
हालत या मजबूरी उससे कोठे पर
ले जाती है., भांध कर घूँगरू
नाचती है रिज़ाति हैं. छ्छूप कर
आँसू बहती है.
दो प्यार के बोलों को तरस
जाती है,
मौत की दुहाई हा रोज़
खुदा से मांगती

विकलांग कोई भी
मर्ज़ी से नही जानम लेता
फिर क्यूँ सब घृणा से देखते है
उससे भी हक़ है
उतना ही अधिकार है
जितना सब को है.
क्यूँ उससे चार दीवारी तक ही
समैट कर रखते है
क्या उससे प्यरा का हुक़ नही
क्या उसके जज़्बातों में
कमी है-----------
या दुनिया का दिल इतना छोटा है
बताओ यह किसका कसूर है.

विधवा
यह श्राप की तरहा अक्षर है
जिससे भी यह जुड़ जाए
उसकी तो ज़िंदगी लाश है
प्यार तो खोती है मासून
लोग उसका जीना भी
चीन लेते हैं
शिनगर तो छ्छूट जाता है
उसका नीवाला भी छीन लेते हैं
बिस्तर पर पति का साथ जाता
कामभक्त बिस्तर भी
चीन लेते हैं

वीसे विधुर होता है
सारे सोते हैं
वो छुप्कर रोता है
बचों से मं सा प्यार
लड़ाता है
दिल में यादैन संजो कर
पत्नी के लिए तड़प ता है
अपनी खुशियाँ
बचों में खोजता है
पत्नी की परच्छाइन को
बचों में देखता है
अक्षर इतना क्यूँ
विनाशकारी है?

हर ओर विनाश ही मिलता है
वी शब्द का कैसा यह विकार है
वैश्या, विकलांग विद वा विधुर
सारे ही इस विनाश का शिकार है

Monday, January 19, 2009

देश की मिट्टी

देश की मिट्टी ऐसी छूटी,
भाग्य मुझे लाया परदेश
घर, रिश्तों से बढीं दूरियाँ,
छूटा मेल-जोल, संदेश

बहन और माँ-बाबा की,
सारी खुशियों की खातिर
सात समुंदर पार बसाया,
धन की चाहत ने आख़िर

प्यारी बहना की शादी कर,
ऊँचे घर पहुँचाना है
परियों सी सुंदर दुल्हन को,
डोली में बैठाना है

लेकर ये सतरंगी सपने,
लगा कमाने मैं पैसे
पता चला न रात-दिनों का,
कई वर्ष गुज़रे कैसे

धन-दौलत तो मिली बहुत सी,
साथ मिली पर ऐसी भूख
जिसमें रिश्ते भावनाओं की,
लहराती बगिया गई सूख

माँ जी-बाबा याद न आए,
आती रहीं दीवाली-होली
न ही आकर मैं शादी में,
उठा सका बहना की डोली

दिल के सारे ज़ज़्बातों को,
हालातों के किए हवाले
दूर देश में बस जाने से,
हुए पराए हम घर वाले

वृद्ध पिता बीमार पड़े हैं,
उसका बेटा पास नहीं
माँ के कंपते हाथ में चिट्ठी,
पर आने की बात नहीं है

कौन नहीं खिंचता आएगा,
माँ-बाबा की यादों से
भला मुकर सकता है कोई,
धरती माँ के वादों से

लेकिन वर्षों की मेहनत का,
यहाँ खड़ा है कारोबार
किसको इसे हवाले कर दें,
सोचा मैने बारंबार

इसी कशमकश में उलझी है,
मेरे जीवन की गाड़ी
शायद रिश्तों के बारे में,
समझ न पाया रहा अनाड़ी

शक्ल देखने को बाबा की,
ये दिल तरसा करता है
माँ के हाथ की रोटी खाने,
ये दिल तड़पा करता है //

सारी खुशियाँ होने पर भी,
कमी देश की खलती है /
उस मिट्टी में वापस आने,
इच्छा सदा मचलती है //
-नीरा
मेरी रचना 'कमजोरी' भी पढ़ें

Tuesday, January 6, 2009

मगर .

तेरी मेरी कहानी
Alag hai-----

तुम पाना चाहती हो
प्यार को
मेरी वो पूजा है
तेरी आँखों में
चाँद बनके वो ठहरा है
मुझे दूर से ही चाँद को
देखना है .

तुमने पहननी
वरमाला है
मुझे फूल भक्तिके है देने
रिश्ते का एक नाम
है तुम्हारा
मेरे लिए एक हर्फ़ भी नही

तुम्हे इंतज़ार
मिलन का है ----
मिल जाए
इसी जनम में .
मुझे मरकर
पार जाना है -------
कुछ हसरतों
को जगाना है .
दोबारा दुनिया
में आना है
मुझको भी पाना है
तुमको भी पाना है
मगर ..??