Tuesday, December 1, 2009

मिलता ना कोई सम्मान है

क्या कभी किसी ने सोचा है
क्या कभी किसी ने पूछा है
तुम्हारी भी कोई चाहत है
तुम्हारी भी कोई इच्छा है

ट्रेफिक सिग्नल पर खड़े
ताली बजा कर पैसे लें
जो ना करे तंग उनको
जी भर के वो दुआ दें.

आए जो कहीं दुल्हन
खबर उनको लग जाती है
आकर दूल्हे के घर वो
आशीर्वाद दे जाते हैं

बदले में मिलता क्या उनको
कुछ कपड़े कुछ रुपए बस.
देता ना कोई इज़्ज़त इनको
मिलता ना कोई सम्मान है

वो भी है इंसान हम से
है उनका भी अपना घर
कुछ कमी है तभी,
वो कहलाते " किन्नर"

2 comments:

Udan Tashtari said...

इस विषय विशेष पर सुन्दर रचना!! कम ही लिखा गया है इस विषय पर.

"Nira" said...

sameer ji
aapko yahan dekhkar bahut acha laga
aapko kavita pasand aayi dilse abhari hoon
dhanyawaad