Saturday, April 11, 2009

होरी खेलन चले मुसदिलाल

लाल घाट पर रहते रहते, कहें मुसद्दी लाल
होरी में इस साल सभी देखो मेरा धमाल

गोरी की इस बार रंगों से , होगी मुलाकात ।
रंग देंगे तन -मन उसका , चेहरे की क्या बात

पग ठिठके पथ में उसके , हुआ नहीं विश्वास
देखा जब माँ के ही आगे, पड़ी पुत्र की लाश

उसकी भी तो होरी होगी , पर अग्नि के साथ
रोते देखा उसकी माँ को , मले वो अपने हाथ

पी ठंडाई कहीं पे , मचलें छैल -छबीले
डाल रहे रंग एक दूजे पर हरे-लाल-नीले-पीले

कहीं पर बच्चे कचरे में ढूँढ रहे थे रोटी
होली खेल नहीं पायें, इनकी किस्मत खोटी

देख के दुनिया का ये रंग कहें मुसद्दीलाल
आज तो मेरे भेजे में उमड़े कई सवाल

अब न ही रंग न ही करेंगे आँख मिचोली
यहाँ मुसद्दी के दिल की जलने लगी है होली

8 comments:

विजय तिवारी " किसलय " said...

आदरणीया नीरा जी
होली के पावन अवसर पर लिखी गयी ये रचना हमेशा की तरह समाज की विद्रूपताओं और समाज के अनछुए पहलू को चित्रित करती है. आज के बदलते परिवेश में हर इंसान भाग दौड़ में लगा है, आज किसी के पास दो पल भी नहीं है की वे किसी के सुख दुःख को भी देख सकें , फिर हम उनसे मानवता की उम्मीद किस आधार पर करें. ये विडंबना कल हमारे लिए घातक ही होगी
- विजय

"Nira" said...

vijay jee
aapko yahan dekhkar bahut acha laga
sach hi kaha hai, aaj ke daur mein bache maa baap ko nahi poochte
koi kisi aor ko kya poochega.

aapko rachna pasand aayi dilse shukriya.
nira

समयचक्र said...

नीराजी
नमस्ते
आज प्रथम बार आपके ब्लॉग का अवलोकन किया बहुत अच्छा लगा.
कहीं पर बच्चे कचरे में ढूँढ रहे थे रोटी
होली खेल नहीं पायें, इनकी किस्मत खोटी
रचना बहुत ही भावपूर्ण . धन्यवाद.

शोभना चौरे said...

neeraji
apki kavita man ko chu gai.
kitne log aise hai jo kchra binne valo bachho ka dard mhsus kar pate hai ya to ve log jinhone unke liye kuch kiya ho ya ve jo kuch karna chahte hai |

Mai Aur Mera Saya said...

achhi holi hai

"Nira" said...

नीराजी
नमस्ते
आज प्रथम बार आपके ब्लॉग का अवलोकन किया बहुत अच्छा लगा.
कहीं पर बच्चे कचरे में ढूँढ रहे थे रोटी
होली खेल नहीं पायें, इनकी किस्मत खोटी
रचना बहुत ही भावपूर्ण . धन्यवाद

aapka mere blog par swagat hai.
ghar se niklo bahar toh kayi aor dard milte hain
aapko kasandh aayi rachna
bahut bahut shukriya
nira

"Nira" said...

neeraji
apki kavita man ko chu gai.
kitne log aise hai jo kchra binne valo bachho ka dard mhsus kar pate hai ya to ve log jinhone unke liye kuch kiya ho ya ve jo kuch karna chahte hai |

shobna ji
aapka mere blog par sawagat hai, aapko pasand aayi rachna
bahut bahut shukriya
yunhi aate rahiyega
nira

"Nira" said...

mai aor mera saaya ji

achhi holi hai


shukriya
nira