Sunday, March 8, 2009

खैरात की जिंदगी नहीं चाहिए.

आज की नारी खुद में एक ढाल है
अपनी एक पहचान है।
गये ज़माने, जब गुलाम थी
वो हर बात इजाज़त पर निर्भर थी
सांस भी उधार में लेनी पढ़ती थी।

सब को खिला कर अन्नपूर्णा
अकेले खाने बैठती थी।
सबके सोने के बाद भी।
सब की सेवा करती थी

अब आजादी वो चाहती है।
खुद अपने नियम बनायगी
क़दम से कदम वो मिलाएगी,
राह से हर तूफ़ान हटाएगी

गर्व से अब वो जिए जायेगी
कमजोरी को ताकत बनाएगी
खैरात की जिंदगी नहीं चाहिए।
स्वाभिमान से वो सर उठाएगी

अब देखो कोई झूका ना पायेगा
शक्ति का प्रतिबिम्ब बनकर
वो जग में जगमगायेगी
अब वो सही रूप में सामने आएगी

अब सर उठायेगी
अब दुनिया झुकायेगी
- नीरा

2 comments:

नीरा said...

नारियों का उत्साह वर्धन करती रचना उनमें जोश और अपने अधिकारों के प्रति जागरूकता लाएगी.
- विजय

Sapana said...

Niraji,

Aapki profile padhi.lagata hai dilpe bahot chot khaai hai. maine bhi. is liye maine bhi likhana shuru kiya.
We are in same boat.I like your blog a lot.We are speaking same language.
Sapana