Monday, January 19, 2009

देश की मिट्टी

देश की मिट्टी ऐसी छूटी,
भाग्य मुझे लाया परदेश
घर, रिश्तों से बढीं दूरियाँ,
छूटा मेल-जोल, संदेश

बहन और माँ-बाबा की,
सारी खुशियों की खातिर
सात समुंदर पार बसाया,
धन की चाहत ने आख़िर

प्यारी बहना की शादी कर,
ऊँचे घर पहुँचाना है
परियों सी सुंदर दुल्हन को,
डोली में बैठाना है

लेकर ये सतरंगी सपने,
लगा कमाने मैं पैसे
पता चला न रात-दिनों का,
कई वर्ष गुज़रे कैसे

धन-दौलत तो मिली बहुत सी,
साथ मिली पर ऐसी भूख
जिसमें रिश्ते भावनाओं की,
लहराती बगिया गई सूख

माँ जी-बाबा याद न आए,
आती रहीं दीवाली-होली
न ही आकर मैं शादी में,
उठा सका बहना की डोली

दिल के सारे ज़ज़्बातों को,
हालातों के किए हवाले
दूर देश में बस जाने से,
हुए पराए हम घर वाले

वृद्ध पिता बीमार पड़े हैं,
उसका बेटा पास नहीं
माँ के कंपते हाथ में चिट्ठी,
पर आने की बात नहीं है

कौन नहीं खिंचता आएगा,
माँ-बाबा की यादों से
भला मुकर सकता है कोई,
धरती माँ के वादों से

लेकिन वर्षों की मेहनत का,
यहाँ खड़ा है कारोबार
किसको इसे हवाले कर दें,
सोचा मैने बारंबार

इसी कशमकश में उलझी है,
मेरे जीवन की गाड़ी
शायद रिश्तों के बारे में,
समझ न पाया रहा अनाड़ी

शक्ल देखने को बाबा की,
ये दिल तरसा करता है
माँ के हाथ की रोटी खाने,
ये दिल तड़पा करता है //

सारी खुशियाँ होने पर भी,
कमी देश की खलती है /
उस मिट्टी में वापस आने,
इच्छा सदा मचलती है //
-नीरा
मेरी रचना 'कमजोरी' भी पढ़ें

3 comments:

Prem Farukhabadi said...

सारी खुशियाँ होने पर भी,
कमी देश की खलती है /
उस मिट्टी में वापस आने,
इच्छा सदा मचलती है //

Neeraji
Bilkul sahi kaha aapne. Badhaai ho.

नीरा said...

prem ji
aapka mere blog par swagat hai. aapko rachna pasand aayi bahut bahut shukriya
nira

विजय तिवारी " किसलय " said...

नीरा जी
अभिवंदन
आप की रचना बेहद महत्वपूर्ण और सारगर्भित है ,
आपकी रचना में देश प्रेम की भावना भी

आई जो बहुत ही अच्छी बात है.
आपको हार्दिक बधाई

- विजय तिवारी " किसलय "